मेरे ज्यादा बोलने से सिकायत है सबको पर मेरे अंदर की खामोसी का इस्तेकबाल भी ना कर सकेंगे इजहार-ए-मुस्कुराहट तो सबके लिए है पर जज्बात जो कोइ समझ ना सकेंगे नासमझ बन खुश हो लेने दिजिए हमे भी समझदारी है जो जमीर-ए-स्वाति को झँझोड़ कर रख देता है नासमझ है हम अहसान फ़रामोस नहीं जो हमारा बुन्द भर भी साथ दे रहे आज वक्त आने पर हम उनको समन्दर लौटाएन्गे ✍️अनोखी ???🤔 #अनोखी