इस जीवन का न कोइ साथी है न कोई संगम है मन विकल समुन्द्र सा जिसका कोइ अन्त्यास्त नहीं थमकर भी, कौंध जाता वह बिजली सा चित्रफ़लक तेरा क्या इस चित्र का कोइ अवसान नहीं । # चित्र #