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इस जीवन का न कोइ साथी है न कोई संगम है मन विकल स

इस जीवन का न कोइ साथी है 
न कोई संगम है 
मन विकल समुन्द्र सा 
जिसका कोइ अन्त्यास्त नहीं 
थमकर भी, कौंध जाता 
वह बिजली सा चित्रफ़लक तेरा 
क्या इस चित्र का 
कोइ अवसान नहीं । # चित्र #
इस जीवन का न कोइ साथी है 
न कोई संगम है 
मन विकल समुन्द्र सा 
जिसका कोइ अन्त्यास्त नहीं 
थमकर भी, कौंध जाता 
वह बिजली सा चित्रफ़लक तेरा 
क्या इस चित्र का 
कोइ अवसान नहीं । # चित्र #