रचना दिनांक ८,,८,,२०२३ वार मंगलवार समय्् शाम पांच बजे ्््शीर्षक ्् मध्यकालीन भारतीय इतिहास में प्रेम वह निश्चित शब्दों की़ व्यूह रचना,, वो चाहे चंदबरदाई हो,, या फिर गृहस्थ आश्रम में समाधिस्थ रत्नावली जो कटाक्ष शब्द भेदी बाण ने क्या जीवन को भेदा है््् दो समकालीन विदूषी शास्त्रार्थ अध्यात्म जगत में,, अभ्यस्त ने प्रृथ्वीराजचौहान और मौ्् गौरी का प्रसंग है।। ठीक विपरीत बुद्धि में आंखें डालकर अच्छे ख्यालात से रत्नावली ने अपने पति हुलसी पूत्र तुलसी को शब्द कटाक्ष ने गोस्वामी तुलसीदास बना दिया।। ्््भावचित्र शब्द पूष्प वाटिका हुलसी पूत्र तुलसी में,,काया रत्न विभोर। प्रेम रत्न की रत्नावली,, मृग कस्तूरी में आंनद।। भाव विभोर प्रेम रस में,, निश्चल प्रेम मेघ जल सरयू में।। मीन भूजंग निशा रजनीचर में।। प्रेम शिखा अमृत तुल्य रस में,, हांड मांस की प्रत्यन्चा से,, वो शब्द भेदी बाण बेध दिया।। रत्नावली के वो प्रेमाआंनद ने,, आत्म विभोर वो दर्शन तुलसी।। ज्ञान कोटी परमं दास प्रभु के राम रस में।। ्््् ््कवि शैलेंद्र आनंद ८,, अगस्त २०२३ ©Shailendra Anand #Dussehra2020