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शरहद से आई चिट्ठी पढ़ कर । माँ बिलखि चिल्लाई । हाथ

शरहद से आई चिट्ठी पढ़ कर ।
माँ बिलखि चिल्लाई ।

हाथ से चिट्ठी छुटी माँ के ।
बीवी ने उठाई ।

सुन रह गयी पढ़ कर ।
उसके शोहर की खबर जो आई ।

कोहराम मच गया घर मे ।
आस पड़ोस से भीड़ भी आई ।

सब पूछ रहे क्या हुआ ।
तब माँ ने सब को बात बताई ।

बेटा मेरा शरहद का चौकीदार ।
तुम सब उसके बाक़ीदार हो ।

न चुका सकोगे सुत भी उसका ।
मूल की छोड़ो बात भाई ।

बहा दिया कतरा कतरा लहू का ।
उसकी माँ पर आंच जो आई ।

न झुकने दिया तिरंगा उसने ।
भले कई गोलिया सीने पर खाई ।

अब आ रहा है बेटा मेरा 
तिरंगे में लिपट कर 
रोना नही बिल्कुल भी 
गर्व से करना उसकी विदाई ।

लेखक - अभिषेक बदनाम शरहद से आई चिट्ठी पढ़ कर ।
माँ बिलखि चिल्लाई ।

हाथ से चिट्ठी छुटी माँ के ।
बीवी ने उठाई ।

सुन रह गयी पढ़ कर ।
उसके शोहर की खबर जो आई ।
शरहद से आई चिट्ठी पढ़ कर ।
माँ बिलखि चिल्लाई ।

हाथ से चिट्ठी छुटी माँ के ।
बीवी ने उठाई ।

सुन रह गयी पढ़ कर ।
उसके शोहर की खबर जो आई ।

कोहराम मच गया घर मे ।
आस पड़ोस से भीड़ भी आई ।

सब पूछ रहे क्या हुआ ।
तब माँ ने सब को बात बताई ।

बेटा मेरा शरहद का चौकीदार ।
तुम सब उसके बाक़ीदार हो ।

न चुका सकोगे सुत भी उसका ।
मूल की छोड़ो बात भाई ।

बहा दिया कतरा कतरा लहू का ।
उसकी माँ पर आंच जो आई ।

न झुकने दिया तिरंगा उसने ।
भले कई गोलिया सीने पर खाई ।

अब आ रहा है बेटा मेरा 
तिरंगे में लिपट कर 
रोना नही बिल्कुल भी 
गर्व से करना उसकी विदाई ।

लेखक - अभिषेक बदनाम शरहद से आई चिट्ठी पढ़ कर ।
माँ बिलखि चिल्लाई ।

हाथ से चिट्ठी छुटी माँ के ।
बीवी ने उठाई ।

सुन रह गयी पढ़ कर ।
उसके शोहर की खबर जो आई ।