कब तलक सहते रहें दर्दे-वफ़ा को कोई तो हो जो समझे इस जफ़ा को, यार तो बेदर्दी है मिरा ना उसे हया बेरुख़ी उसकी बुला रही मेरी कज़ा को, शामियाना ज़िन्दगी का अब फट रहा सांसे लेकर पूरी करेगी अपनी रज़ा को, गर सुनाए मेरी दास्तां कोई जमीं पे रोये आसमां भी सुन के मेरी अजां को.. ©नौख़ेज़ #love #pain #zindagi #sky #rain #अजान