एक सिहरन सी उठती है, नश्तर सी दिल में चुभती है क्या उसने मुझे पुकारा है या वो बादल आवारा है नदियाँ कितना इठलाती हैं फिर सागर में मिल जाती हैं ना तेरा,ना मेरा है, मुश्किल मन का हर फेरा है चाँद भी कितना तन्हा है, चंद ख़्यालों का एक लम्हा है बात जब उसकी आती है, यादें अंदर तक धँस जाती हैं जिसे भी ज्यादा चाहा है, उसीने हमें रूलाया है ज़िदंगी कितना देती है, दुनिया वापस ले लेती है मन में एक लड़ाई है, मेरे कर्मों की परछाई है मन से ही जग हारा है, मन ने ही उसे उबारा है दूर से खुश्बू आती है,लफ्ज़ों में बस जाती है हद से जब ये दिल गुज़रता है, तब काग़ज पे एक अक्स उभरता है... © abhishek trehan #सिहरन #नश्तर #कर्म #परछाईं #manawoawaratha #yqdidi #yqaestheticthoughts #yqrestzone