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मैं अक्सर नंगे पांव चला करता था, खेतों की पगडण्डी

मैं अक्सर नंगे पांव चला करता था, खेतों की पगडण्डी पर, 
अकारण बस यूहीं, या मन के कुछ बोझिल हो जाने पर, 
कभी भरी धूप तो, कभी गोया साँझ होने  जाने पर, 
कभी वो धान में बालियाँ, तो कभी मटर की लताओं में फूल आने पर ।
एक अलग सा नशा है, खेतों की हरेरी में, 
हाथ चूमती फसलें, दिमाग शून्य की फेरी में।
                              -दिवाकर त्रिपाठी # हरियाली
मैं अक्सर नंगे पांव चला करता था, खेतों की पगडण्डी पर, 
अकारण बस यूहीं, या मन के कुछ बोझिल हो जाने पर, 
कभी भरी धूप तो, कभी गोया साँझ होने  जाने पर, 
कभी वो धान में बालियाँ, तो कभी मटर की लताओं में फूल आने पर ।
एक अलग सा नशा है, खेतों की हरेरी में, 
हाथ चूमती फसलें, दिमाग शून्य की फेरी में।
                              -दिवाकर त्रिपाठी # हरियाली