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चलो लौट जाएं।। चलो, तुमसे साझा कुछ राज़ करते हैं।

चलो लौट जाएं।।

चलो, तुमसे साझा कुछ राज़ करते हैं।
कल की ठिठोलियाँ फिर आज करते हैं।

कहाँ वो अमियाँ, वो क्यारी, वो खेत हरे,
अकेले में खुद को ही दगाबाज़ कहते हैं।

क्या मज़हब था अपना, था वो धर्म क्या,
बेमतलब सारे, अब जिनपे नाज़ करते हैं।

जो तेरा टिफिन था, था मेरा टिफिन भी,
हवन तुम, अलहदा हम नमाज़ करते हैं।

गेंद मेरी, तेरा था बल्ला, रहा खेल एक,
गेरुआ हरा हमें अब रंग साज़ करते हैं।

सेवईयां तेरी, थी खीर मेरी, शककरभरी,
अपना निवाला अब हमे ये बाज़ करते हैं।

चलो लौट जाएं, उसी दुनिया मे हम तुम,
कुछ बातें मिल दोनों नज़रंदाज़ करते हैं।

©रजनीश "स्वछंद" चलो लौट जाएं।।

चलो, तुमसे साझा कुछ राज़ करते हैं।
कल की ठिठोलियाँ फिर आज करते हैं।

कहाँ वो अमियाँ, वो क्यारी, वो खेत हरे,
अकेले में खुद को ही दगाबाज़ कहते हैं।
चलो लौट जाएं।।

चलो, तुमसे साझा कुछ राज़ करते हैं।
कल की ठिठोलियाँ फिर आज करते हैं।

कहाँ वो अमियाँ, वो क्यारी, वो खेत हरे,
अकेले में खुद को ही दगाबाज़ कहते हैं।

क्या मज़हब था अपना, था वो धर्म क्या,
बेमतलब सारे, अब जिनपे नाज़ करते हैं।

जो तेरा टिफिन था, था मेरा टिफिन भी,
हवन तुम, अलहदा हम नमाज़ करते हैं।

गेंद मेरी, तेरा था बल्ला, रहा खेल एक,
गेरुआ हरा हमें अब रंग साज़ करते हैं।

सेवईयां तेरी, थी खीर मेरी, शककरभरी,
अपना निवाला अब हमे ये बाज़ करते हैं।

चलो लौट जाएं, उसी दुनिया मे हम तुम,
कुछ बातें मिल दोनों नज़रंदाज़ करते हैं।

©रजनीश "स्वछंद" चलो लौट जाएं।।

चलो, तुमसे साझा कुछ राज़ करते हैं।
कल की ठिठोलियाँ फिर आज करते हैं।

कहाँ वो अमियाँ, वो क्यारी, वो खेत हरे,
अकेले में खुद को ही दगाबाज़ कहते हैं।