खिलने को तैयार नहीं थी तुलसी भी जिनके आंगन में मैंने भर-भर दिए सितारे उनके मटमैले दामन में पीड़ा के संग रास रचाया आंख भरी तो झूम के गाया जैसे मैं जी लिया किसी से क्या इस तरह जिया जाएगा... -वेद प्रकाश ©VED PRAKASH 73 #शिलालेख