Nojoto: Largest Storytelling Platform

वो बचपन की शैतानी.. जब हम करते थे अपनी मनमानी बारि

वो बचपन की शैतानी..
जब हम करते थे अपनी मनमानी
बारिश में खूब नहाते..माँ को हम रिझाते
गुजरे वो पल याद आते हैं
जब माँ लोरी गाती थी
मर मर सुलाती थी...
जब मैं रोऊँ वो खुद मनाती थी
वो माँ के शाथ मे मेले जाना..
बदमाशी कर झुले झुल आना..
माँ के साथ मंदिर न जाना करके
  कुल्फी खाने का बहाना..यारों
के शाथ झुला झुल आना...
जब याद आता है वो बचपन....
लगता हैं वैसे भी गुजरे जबानी.... वो बचपन की शैतानी..
जब हम करते थे अपनी मनमानी
बारिश में खूब नहाते..माँ को हम रिझाते
गुजरे वो पल याद आते हैं
जब माँ लोरी गाती थी
मर मर सुलाती थी...
जब मैं रोऊँ वो खुद मनाती थी
वो माँ के शाथ मे मेले जाना..
वो बचपन की शैतानी..
जब हम करते थे अपनी मनमानी
बारिश में खूब नहाते..माँ को हम रिझाते
गुजरे वो पल याद आते हैं
जब माँ लोरी गाती थी
मर मर सुलाती थी...
जब मैं रोऊँ वो खुद मनाती थी
वो माँ के शाथ मे मेले जाना..
बदमाशी कर झुले झुल आना..
माँ के साथ मंदिर न जाना करके
  कुल्फी खाने का बहाना..यारों
के शाथ झुला झुल आना...
जब याद आता है वो बचपन....
लगता हैं वैसे भी गुजरे जबानी.... वो बचपन की शैतानी..
जब हम करते थे अपनी मनमानी
बारिश में खूब नहाते..माँ को हम रिझाते
गुजरे वो पल याद आते हैं
जब माँ लोरी गाती थी
मर मर सुलाती थी...
जब मैं रोऊँ वो खुद मनाती थी
वो माँ के शाथ मे मेले जाना..