कोमलांग जो हृदय,स्वभाव वासयुक्त हो। रश्मियां विराजमान,रीझती विभावरी।। तृण धारित धरित्री,अंबर केसरी धरें। लज्जित है मृदा कलरव है माधुरी।। माँ शारदेय श्वेत शुभ श्वेतार्क उर। चंद्रहास मीनाक्षी,प्रकृति भव सांवरी।। हे!माधुकर नयनी,कृपाक्षी कृपा अनमोल। मीनाक्षी दो मधुरता,हरो विकल कावरी।। ऋतिका जी की कविता का बड़ा भाग इसमे समाहित है #बसन्त_पंचमी #बसन्त #सरस्वती #माँ #सरल_छलिया