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ख्वाशिहों की डगर में धूप है सागर भी है, तेरा तो हम

ख्वाशिहों की डगर में धूप है सागर भी है,
तेरा तो हमसफ़र भी तू है ,
कहते लोग काफ़िर जिसे।
क्यों तू ढूंढता है खुदा को वो बसे हैं तुझमे कही,
पंडितों से क्यों तू पूछे मुश्किलों के हल सभी।
क्यों है ऐसा की मंदिरों में तू करोड़ों दान करे,
और भिक्षुको को तू क्यों आख़िर अन्न भी न प्रदान करे।
क्यों है ऐसा की इस धरती पर हिन्दू हैं मुसलमान हैं,
उसने तो बनाये सब एक जैसे ही इंसान हैं।

उसके आगे रोज़ है सर को तुम टेकते ,
फिर भी माँ-बाप को घर से बहार निकाल तुम फेंकते,
आँगनों में तुलसी को रोज़ तुम पूजते,
फिर भी नुक्कड़ों पर औरतें को बिंझिझक तुम छेड़ते।
अब तो बाँटते हो दिनों से तुम भोजन भी है,
शनिवार तुम मांस न खाते रविवार सब माफ़ है।

क्यों है ऐसा की शिशुओं में लड़के ही तुम पूजते,
और लड़कियों को जन्म लेते ही माँओं से तुम छीनते।
क्यों है ऐसा की ईमारतों पर मंज़िलें है बढ़ती रही,
फिर भी सड़कों पर सोते हैं आज भी इंसा हर कहिं।
क्यों है ऐसा की जो भी इंसा सर्व शक्तिमान है,
लोगों के प्रड़ो को लेना उसका रोज़ का ही काम है।

एक बार तुम खुद से पुछो क्या गलत और क्या सही,
न झुकेगा दूसरों के आगे फिर तुम्हारा सर कभी।
रुक जाओ ठहर जाओ सोच करो विचार करो,
मगर कभी भी किसी पर भी पीठ पीछे न वार करो।
ख्वाहिशों की इस डगर में चलना तो आसान है,
हर मोड़ पर रुक के सोचना क्योंकि तुझमे भी तो भगवान् है।
             -शुभम मिश्र
 #NojotoQuote काफ़िर
ख्वाशिहों की डगर में धूप है सागर भी है,
तेरा तो हमसफ़र भी तू है ,
कहते लोग काफ़िर जिसे।
क्यों तू ढूंढता है खुदा को वो बसे हैं तुझमे कही,
पंडितों से क्यों तू पूछे मुश्किलों के हल सभी।
क्यों है ऐसा की मंदिरों में तू करोड़ों दान करे,
और भिक्षुको को तू क्यों आख़िर अन्न भी न प्रदान करे।
क्यों है ऐसा की इस धरती पर हिन्दू हैं मुसलमान हैं,
उसने तो बनाये सब एक जैसे ही इंसान हैं।

उसके आगे रोज़ है सर को तुम टेकते ,
फिर भी माँ-बाप को घर से बहार निकाल तुम फेंकते,
आँगनों में तुलसी को रोज़ तुम पूजते,
फिर भी नुक्कड़ों पर औरतें को बिंझिझक तुम छेड़ते।
अब तो बाँटते हो दिनों से तुम भोजन भी है,
शनिवार तुम मांस न खाते रविवार सब माफ़ है।

क्यों है ऐसा की शिशुओं में लड़के ही तुम पूजते,
और लड़कियों को जन्म लेते ही माँओं से तुम छीनते।
क्यों है ऐसा की ईमारतों पर मंज़िलें है बढ़ती रही,
फिर भी सड़कों पर सोते हैं आज भी इंसा हर कहिं।
क्यों है ऐसा की जो भी इंसा सर्व शक्तिमान है,
लोगों के प्रड़ो को लेना उसका रोज़ का ही काम है।

एक बार तुम खुद से पुछो क्या गलत और क्या सही,
न झुकेगा दूसरों के आगे फिर तुम्हारा सर कभी।
रुक जाओ ठहर जाओ सोच करो विचार करो,
मगर कभी भी किसी पर भी पीठ पीछे न वार करो।
ख्वाहिशों की इस डगर में चलना तो आसान है,
हर मोड़ पर रुक के सोचना क्योंकि तुझमे भी तो भगवान् है।
             -शुभम मिश्र
 #NojotoQuote काफ़िर