वह संस्कारो की वाहिनी संयम की स्वरागिनी धैर्य की अतुल्य निधि हैं नम्रता की विधि हैं प्रतिरुप हैं वह वसुधा की गंगा जल के मृदूता की वह गृहलक्ष्मी हैं, गृहशोभा हैं वह स्नेह हैं, ममता हैं मानव की अस्मिता है़ वह संस्कृति हैं,वह सभ्यता है़ वह राधा हैं, वह सीता हैं वह वनिता है़ं, वह वनिता हैं ©️ संतोष . ©संतोष #Feminism