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हम भी बहुँत मगरूर थे रिश्तों की डोर हमने भी बहुँत

हम भी बहुँत मगरूर थे रिश्तों की डोर हमने भी बहुँत तबीयत से थाम रखी थी
विरोध जितना होता उतना हमने भी अवरोध लगा रखा था।
रिस्तो को हमने हमेसा कसौटी पर आजमा रखा था
तेरा-मेरे के तमाशे में हमने भी बहुँत जोर दे रखा था
हमको अहसास बाद में हुआँ रिस्ते की डोर ठीक पतंग की डोर की तरह हैं
 जितना आहिस्ता थामोगे जितना ढील दोगे वो उतनी उचाई तक जायेगा
   पर अफसोस अहसास में थोड़ी देर हो गई।

©दिल वाले शायर
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