Nojoto: Largest Storytelling Platform

ग़ज़ल जब किताब के पन्नों से निकल कर कण्ठ में घुलती ह

ग़ज़ल जब किताब के पन्नों से निकल कर कण्ठ में घुलती है, अक्षर जब सुर-दर-सुर रस-मंजरी में परिवर्तित होते हैं, साधक जब स्वयं साध्य के साथ एकाकार हो जाता है, तो जो संयोग बनता है उसका नाम है मेहदी हसन साहब। कला और साहित्य की संवेदना सरहदों के बाँधे नहीं बँधती। कलावंत, 'शहंशाह-ए-ग़ज़ल' मेहदी हसन साहब ने आने वाली कई पीढ़ियों की समृद्ध स्वर-चेतना को जागृत किया जिनमें भारत के भी कई फनकार शामिल हैं। उनकी अनहद स्वरलहरियाँ पीढ़ियों तक पूरे विश्व में यूँ ही गूँजती रहेंगी। आज, उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें सादर नमन। 🙏❤️- #मेहँदी
ग़ज़ल जब किताब के पन्नों से निकल कर कण्ठ में घुलती है, अक्षर जब सुर-दर-सुर रस-मंजरी में परिवर्तित होते हैं, साधक जब स्वयं साध्य के साथ एकाकार हो जाता है, तो जो संयोग बनता है उसका नाम है मेहदी हसन साहब। कला और साहित्य की संवेदना सरहदों के बाँधे नहीं बँधती। कलावंत, 'शहंशाह-ए-ग़ज़ल' मेहदी हसन साहब ने आने वाली कई पीढ़ियों की समृद्ध स्वर-चेतना को जागृत किया जिनमें भारत के भी कई फनकार शामिल हैं। उनकी अनहद स्वरलहरियाँ पीढ़ियों तक पूरे विश्व में यूँ ही गूँजती रहेंगी। आज, उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें सादर नमन। 🙏❤️- #मेहँदी