आज मुझसे मिलने एक गाफिर आया है। शादियों बाद एक मुसाफिर आया है। वो बचपन का जागीर्द था मेरे जो मुझसे रुठ गया, हम समझ न पाये समय की कसमकस को और वो जागीर्द छूट गया। आज फिर एक गाफिरो की टोली आयी है, जिसमे उस जागीर्द की भी एक बोली आयी है। तख्त-ए-समय ने बदल दिया उसको चला गया वो गफिर नकार कर मुझको, आज वो उस गाफिरो की टोली छोड़ आया है, बचपन का वो जगिरद आज अपनो के पास लौट आया है। आज वो गाफिर आया है, मुझसे मिलने शादियों बाद एक मुसाफिर आया है। आज मुझसे मिलने एक गाफिर आया है। शादियों बाद एक मुसाफिर आया है। अनुराग राय