ऊँची इमारतें यूँ तो मुझे खलते नहीं हैं चाँद-ओ-सूरज मेरे लिए निकलते नहीं हैं लदी हैं इतनी उम्मीदें ख़त के काग़ज़ पर उससे बने नाव पानी पर चलते नहीं है जाँच लो बारी-बारी से सब औज़ार हमपे इतनी आसानी से हम खुलते नहीं है मेरे हाथों में रह गयी उसकी बद-दु'आ मेरे हाथों से शज़र फलते नहीं है माँ बड़ी है ओहदे में बस बाप से इतना बाप के दूध से बच्चे पलते नहीं हैं सितम ये है कि बाहिर धूप तेज़ है शुक्र ये है कि इससे हम जलते नहीं है ©Rishav Shandilya ग़ज़ल ❤️ #Gulabisaanjh