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क्या कुवत है सुनो फ़क़त मेरे नाम में। मैं रोज सूरज स

क्या कुवत है सुनो फ़क़त मेरे नाम में।
मैं रोज सूरज से आँख मिलाता हूँ शाम में।।



रोज सैकड़ों सन्देश आता है।
बहुत मशरूफ़ रहता हूँ आजकल काम में।।



ए हुब्बाब तू ख्वाब देख शहंशाही का।
नही लगता है एक पैसा भी इस काम में।। Adnan Rabbani's Shayari • क्या #कुवत है #सुनो #फ़क़त मेरे नाम में।
मैं #रोज सूरज से #आँख #मिलाता हूँ शाम में।।

रोज #सैकड़ों #सन्देश आता है।
बहुत #मशरूफ़ रहता हूँ आजकल काम में।।

ए हुब्बाब तू #ख्वाब देख #शहंशाही का।
नही #लगता है एक पैसा भी इस काम में।।
क्या कुवत है सुनो फ़क़त मेरे नाम में।
मैं रोज सूरज से आँख मिलाता हूँ शाम में।।



रोज सैकड़ों सन्देश आता है।
बहुत मशरूफ़ रहता हूँ आजकल काम में।।



ए हुब्बाब तू ख्वाब देख शहंशाही का।
नही लगता है एक पैसा भी इस काम में।। Adnan Rabbani's Shayari • क्या #कुवत है #सुनो #फ़क़त मेरे नाम में।
मैं #रोज सूरज से #आँख #मिलाता हूँ शाम में।।

रोज #सैकड़ों #सन्देश आता है।
बहुत #मशरूफ़ रहता हूँ आजकल काम में।।

ए हुब्बाब तू #ख्वाब देख #शहंशाही का।
नही #लगता है एक पैसा भी इस काम में।।