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शायरे-आज़म ग़ालिब के बारे मे कुछ कहने की मेरी औक़ा

शायरे-आज़म ग़ालिब के बारे मे कुछ कहने की मेरी औक़ात नहीं ।
शेरो-सुख़न की दुनियाँ मे , मिली किसी को ऐसी शोहरत
की सौगात नहीं।  
फिर भी उन्हीं के चन्द अशआर के ज़रिए, उन्हें ख़िराज़े-अक़ीदत पेश करता हूँ :-
ये न थी हमारी क़िस्मत, कि विशाले-यार होता ।
ग़र और जीते रहते, यही इन्तज़ार होता।
ये मसाइले-तसव्वुफ , ये तेरा बयान"ग़ालिब",
तुझे हम वली समझते , जो न बादाख़्वार होता। 
ये कहाँ की दोस्ती है , कि बने हैं दोस्त नासेह,
कोई चारासाज़ होता , कोई ग़म-ग़ुसार  होता।
हुए हम जो मर के रुसवा, हुए क्यों न ग़र्क़े-दरिया,
न कभी जनाज़ा उठता , न कहीं मज़ार होता।
 ---        और अब ग़ालिब की नज़र मे , विशाले-यार की
अहमियत वेखिए ---
तेरे वादे पे जिए हम , तो ये जान , झूठ जाना ,
के ख़ुशी से मर न जाते , ग़र एतबार होता   ।।
   --* अगर आज ग़ालिब कहीं से नमूदार हो कर हमारी
फितरते-ज़माना देखें, तो क्या कहेंगे-×××
अच्छा हुआ जो ग़ालिब , तू आज ना हुआ ।
अज़मते-शेरो-सुख़न , यूँ  बर्बाद ना हुआ।
कपड़ों की तरह लोग, बदलते हैं हम सफर,
अपनो से बिछड़ कर कोई भी, नाशाद ना हुआ।
          महान शायर #मिर्ज़ाग़ालिब (27 दिसम्बर 1797 - 15 फ़रवरी 1869) का आज जन्मदिवस है। ग़ालिब जो एक मिथक की सी हैसियत रखते हैं, उनकी शायरी का हर कोई दीवाना है। गुलज़ार साहब के मिर्ज़ा ग़ालिब सीरियल और जगजीत सिंह द्वारा गाई गई ग़ज़लों के हवाले से हम ग़ालिब को याद करते रहते हैं। आइए, आज उनको अपने अंदाज़ में याद करें।
#collab   #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi
शायरे-आज़म ग़ालिब के बारे मे कुछ कहने की मेरी औक़ात नहीं ।
शेरो-सुख़न की दुनियाँ मे , मिली किसी को ऐसी शोहरत
की सौगात नहीं।  
फिर भी उन्हीं के चन्द अशआर के ज़रिए, उन्हें ख़िराज़े-अक़ीदत पेश करता हूँ :-
ये न थी हमारी क़िस्मत, कि विशाले-यार होता ।
ग़र और जीते रहते, यही इन्तज़ार होता।
ये मसाइले-तसव्वुफ , ये तेरा बयान"ग़ालिब",
तुझे हम वली समझते , जो न बादाख़्वार होता। 
ये कहाँ की दोस्ती है , कि बने हैं दोस्त नासेह,
कोई चारासाज़ होता , कोई ग़म-ग़ुसार  होता।
हुए हम जो मर के रुसवा, हुए क्यों न ग़र्क़े-दरिया,
न कभी जनाज़ा उठता , न कहीं मज़ार होता।
 ---        और अब ग़ालिब की नज़र मे , विशाले-यार की
अहमियत वेखिए ---
तेरे वादे पे जिए हम , तो ये जान , झूठ जाना ,
के ख़ुशी से मर न जाते , ग़र एतबार होता   ।।
   --* अगर आज ग़ालिब कहीं से नमूदार हो कर हमारी
फितरते-ज़माना देखें, तो क्या कहेंगे-×××
अच्छा हुआ जो ग़ालिब , तू आज ना हुआ ।
अज़मते-शेरो-सुख़न , यूँ  बर्बाद ना हुआ।
कपड़ों की तरह लोग, बदलते हैं हम सफर,
अपनो से बिछड़ कर कोई भी, नाशाद ना हुआ।
          महान शायर #मिर्ज़ाग़ालिब (27 दिसम्बर 1797 - 15 फ़रवरी 1869) का आज जन्मदिवस है। ग़ालिब जो एक मिथक की सी हैसियत रखते हैं, उनकी शायरी का हर कोई दीवाना है। गुलज़ार साहब के मिर्ज़ा ग़ालिब सीरियल और जगजीत सिंह द्वारा गाई गई ग़ज़लों के हवाले से हम ग़ालिब को याद करते रहते हैं। आइए, आज उनको अपने अंदाज़ में याद करें।
#collab   #YourQuoteAndMine
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