हमें है प्रतीक्षा कब हमारे दृग युगल, वेदना की मेघना फुहार को विकल, कब इस द्वेष की अनल से निकल, सुखद भविष्य का प्रभात देखेगीं, कब परस्पर बन्धुत्व और नेह का, रंग का रूप और अंतर देह का भेद विस्मृत कर सकल हेय का, यथार्थ कब राष्ट्रवाद देखेंगी, कब प्राप्त होगा सृजन को मान एवं अतिलोभ कुत्सित धन से निदान एवं, कब तक जीविका पर जय प्राप्त कर मार्ग सर्व 'मुक्त हो अवसाद', देखेगीं ©Kalamgeer #contemporary #leaf