वो ख़्वाब मख़मली जो देखे थे। सपने अपने हुए क्या तेरे ? अल्हड़ मस्त जवानी के जो, वादे किए हुए क्या पूरे ? कुछ चाहत तो 'पिता' कीए थे। कुछ ख़्वाहिश 'माँ' के भी दिल की, कुछ अरमां 'परिजन' रखते थे। कुछ 'जज़्बे' सामाजिक बोलो! ऋण चुकता कर दिए क्या तुमने ? या हैं अनुबंध अधूरे तेरे! तुम कहाँ खड़े हो? हो हासिल में या युहीं पड़े हो! 'कल' से तुमने क्या सीखा है? 'आज' तुम्हे 'कल' सिखलायेगा।