|| श्री हरि: ||
72 - मिलन
आज दाऊ का जन्मनक्षत्र है। यह जन्मनक्षत्र कोई अच्छी बात नहीं। न दो - चार बरस पर आता, ने दो-चार महीने पर, प्रत्येक महीने पहुंचा ही रहता है और जन्मनक्षत्र आया तो मैया वन में जाने नहीं देगी। कन्हाई दिनभर पृथक रहेगा। पूजा-पाठ, स्वस्तिवाचन, हवन-दान-दक्षिणा आदि में श्याम बहुत उत्साह दिखाता है किंतु दाऊ को कोई विशेष रूचि नहीं इनमें। मैया का भय, बाबा का संकोच, मां का आग्रह नहीं तो यह सबको अंगूठा दिखाकर अपने छोटे भाई के साथ वन में भाग जाय।
कृष्णचंद्र भी चाहता है कि उसका दादा अपना जन्मनक्षत्र मनाये और दाऊ आज घर में है। वन में नहीं जा सका वह। हवन, गोदान, पूजा-पाठ, बाद्यगीत, बड़ा महोत्सव होता है इस दिन और आज भी हुआ है किंतु दाऊ को लगता है कि वह एक बडे भारी जनहीन मरूभूमि में पड़ गया है, जहां एक नन्हा झींगर तक "चीं" नहीं करता सुनायी पडता। सुनसान-सुनसान। सब कोलाहल, सब धूम-धड़ाका सब भीड़भाड़; किंतु दाऊ को जैसे यह सब दिखकर भी नहीं दिखता। वह अनमना-सा है। मैया जानती है, माता रोहिणी जानती है, अपने अनुज से पृथक यह ऐसा ही गुमसुम हो जाता है।
'कनूं आ रहा है।' बड़े तेज कान हैं दाऊ के। सबके पहले वंशी-ध्वनि इसी के कानों में पहुंचती है। माता रोहिणी पुकार रही हैं, मैया द्वार तक पीछे लपकी आयी हैं, बाबा 'हां-हां' करते पकडने दौडे़ आ रहे हैं। गायों के झुण्ड के झुण्ड दौड़ते आ रहे हैं और उन कूदती-उछलती सहस्त्रों गायों के बीच में यह नीताम्बरधारी नन्हा-सा दाऊ सीधा ताली बजाकर दौड़ा जा रहा है।
#Books