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ज़िन्दगी के सफ़र के, बिल्कुल आख़री ,कगार के नजदीक

ज़िन्दगी के सफ़र के, बिल्कुल
आख़री ,कगार  के नजदीक पहुंचकर एकदम,
छुड़ा के हाथ, अगर तुमसे कोई 
कहे कि, अब ये रिश्ता हो गया यहीं पे खतम।

क्या हुआ, थक गए क्या चलते-चलते,
कोशिश करो चलने के और भी दो चार कदम।
वैसे तो लाजमी है, बिछड़ ही जाएंगे, 
लेकिन तुम तो, मेरे गर्दिशों के साथी हो हमदम।

बस क्या , ज़िन्दगी भर के कसमें वादे, 
और प्यार वफा का,  तुम्हारा यही इन्तकाम है।
शायद मोहब्बत में ,किसी को नहीं 
मिला होगा, ये पहला मेरी क़िस्मत का इनाम है।

©Anuj Ray
  # ज़िन्दगी के सफ़र के,
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Anuj Ray

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# ज़िन्दगी के सफ़र के, #ज़िन्दगी

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