ऐसे तो कोई बात भी नहीं है, खुशबू नहीं है, बरसात भी नहीं है। तकलीफ़ होती है उन्हें याद करके, और भूल जाने की औक़ात भी नहीं है। ये किसके उठावे में जमघट लगा है, ये जलसा नहीं बारात भी नहीं है। क्यों सर को तेरे दर झुकाता हूँ मैं, पत्थर में जब करामात भी नहीं है। शायर का जब से ये तमगा मिला, मैं मेरा नहीं ज़ज़्बात भी नहीं हैं। चार ग़ज़लें 'डिअर' के हिस्से हैं बस, इसके सिवा जायदाद भी नहीं है। ©Prakhar Kushwaha 'Dear' #ग़ज़ल #gazal #हिंदी #hindigazal #Poetry #hindipoetry