सावन, आशिक और आँखों का काजल अब न मौसम कोई सावन का है और न ही कुसूर इन काले काले बादल का है शायद रो पड़ा हो किसी का कोई आशिक या कुसूर तुम्हारी इन आँखों के काजल का है कभी कभी ही सही मगर कभी तो कभी अपनी सुनाओ कभी उसकी भी सुनो तो गौर से समझो उसके उन जज्बातों को कि क्या ख्याल उस आवारा पागल का है या कुसूर तुम्हारी इन आँखों के काजल का है बेख्याली की एक जिंदगी में गुमसुम सा खामोश रातों मे एक रुनझुने की रुनझुन सा हँसता रोता है आजकल वो बड़े चुपके से क्या ये ही हस्र उस इश्क के घायल का है या कुसूर तुम्हारी इन आँखों के काजल का है क्या है वो गुमसुम तुम्हारे ही ख्यालों में या उलझा हुआ है वो अपने ही सवालों में आखिर कबसे है पागल वो तुम्हारी इस मोहब्बत में या ये आवारा इश्क उसका आजकल का है या कुसूर तुम्हारी इन आँखों के काजल का है क्या खोई कभी तुम भी उसके ख़्वाबों में या है ऐसे ही नाम उसका तेरी इन किताबों में रहती हो आजकल तुम भी बड़ी गुमसुम सी क्या ये जादू उसकी लाई हुई पायल का है या कुसूर तुम्हारी इन आँखों के काजल का है ---@IM_Siddiqui ©IMRAN SIDDIQUI #Aankhonkakajal #Bemausambaarish