कई परिस्थितियों के बंधन से बंधा हूँ मैं , लिखना तो कभी नहीं छोड़ना चाहता मैं , दूर होकर कभी कभी यूँ सिसक रहा था मैं , छोड़ के जाने की बात कभी ना करूँगा मैं , फिर सोंच लिया फ़िर से वैसे ही लिखुंगा मैं , आप सबों से सीखना यूँ ही जारी रखूंगा मैं !! मैंने बीते 100 दिनों में जितना लिखना सीखा है वो मैंने अब तक के 20 सालों में जितना सीखा था । सब का श्रेय आपलोगों को ही जाता है क्योँकि मैं यहां आपसे ही सीखने आया था औऱ हर रोज कुछ नया सीखता था । कई शब्द जिनसे मैं अनजान था उसका भी परिचय हुआ हर रोज पूरी कोशिश करता कुछ अच्छा लिखने की । हर रोज बीते कल से अच्छे लिखने की कोशिश करता रहा आपलोगों का साथ मिलता रहा जो मेरे हौसला बढ़ाने के लिए पर्याप्त था औऱ आपलोगों की सराहना मेरे लिए ऊर्जा स्रोत की तरह काम कर रहे थे ।। 🙂 मैं जब से इस मंच से विदा लेने की सोंचा तब के बाद से अब तक मैंने अकेले रहकर कई विषयों पर विश्लेषण किया कि क्या मैंने जो निर्णय लिया वो अभी इतना जरूरी है जितना मुझे लगता है ?