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हर बार गिर के यूं संभलते रहे, ए जिन्दगी तूने जैसे

हर बार गिर के यूं संभलते रहे,
ए जिन्दगी तूने जैसे चाहा, वैसे हम चलते रहे..


सोचा था जीएंगे जीवन, अपनी शर्तों पर,
मगर तूने जैसे चाहा, वैसे हम ढलते रहे..


कभी खट्टा, कभी मीठा तेरा अनुभाव रहा ,
हर दौर ज़िंदगी का यूं जीते रहे....


कहां से आए और कहां को जाना है,
राहे ज़िंदगी में बस चलते रहे...।

©Bhavana kmishra
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हर बार गिर के यूं संभलते रहे,

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