मुमकिन नही, की हर बात पर हँसा जाय। चलो अब दर्द को,खुल कर कहा जाय। कब तक अश्को को आंख में घर दोगे। अंदर अंदर,खुद को कब तक चुभन दोगे। पत्थर हो???,, ..तो भी टूटोगे तो क्यो न, इंसान बन कर रहा जाय। रास्ते कब रुके है,जो अब रुकेंगे। रास्तों से क्यों डरा जाय? "जीत"मंजिलों को बढ़ा जाय। .. दर्द को अब खुल के कहा जाय। चार लोगों की चार बातें। उन्ही चारों में छोड़ा जाय। चलो ,खुद की परिभाषा खुद में,खुद से गड़ा जाय। मुमकिन नही,कि हर बात पर हँसा जाय चलो,अब दर्द को खुल कर कहा जाय। ...जीत #बयान