|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12
।।श्री हरिः।।
12 - भगवान ने क्षमा किया
ऊँट चले जा रहे थे उस अन्धड़ के बीच में। ऊपर से सूर्य आग बरसा रहा था। नीचे की रेत में शायद चने भी भुन जायेंगे। अन्धड़ ने कहर बरसा रखी थी। एक-एक आदमी के सिर और कपड़ों पर सेरों रेत जम गयी थी। कहीं पानी का नाम भी नहीं था और न कहीं किसी खजूर का कोई ऊँचा सिर दिखायी पड़ रहा था। जमाल को यह सब कुछ नहीं सूझ रहा था। उसके भीतर इससे भी ज्यादा गर्मी थी। इससे कहीं भयानक अन्धड़ चल रहा था उसके हृदय में। वह उसी में झुलसा जा रहा था। उसे पता तक नहीं था कि उसका ऊँट कहाँ जा रहा है। वैसे काफिले के दूसरे ऊँटो के साथ उसका
ऊँट भी ठीक मार्ग पर ही चल रहा था। मार्ग की कल्पना ही थी, रेत के साठ से सौ, दो सौ फीट ऊंचे टीलों के मध्य में कोई मार्ग नहीं था।