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मैं तो खुदा की तलाश में निकला था, इंसानियत के निशा

मैं तो खुदा की तलाश में निकला था,
इंसानियत के निशां ढूंढने निकला था।

जलती रही लाशें यहां बिन शमशान के,
मैं तो उन मुर्दों के पते ढूंढने निकला था।

अब इंसान नजर नहीं आते तेरे जहां में,
इंसान होने का सबूत ढूंढने निकला था।

कितनों की अस्मत सिसकती रही रात भर,
तन ढांपने को एक चीथड़ा ढूंढने निकला था।

बहरे से हो चुके हैं कान उनकी चीखों से,
मासूमों के लिए कफन ढूंढने निकला था।

छाई है अजब सी खामोशी आज की रात,
उस खामोशी का शोर सुनने निकला था।

सुना करते हैं कि यहां इंसानों की बस्ती है,
यकीन करने का कारण ढूंढने निकला था।

कौन कहता है खौफ जंगलों में ही बसता है,
खौफ़जदा ना हो वो गली ढूंढने निकला था।

अब तलक लड़ते ही मिले मजहब के नाम पर,
दफन इंसानियत के कंकाल ढूंढने निकला था।

©Sagar Oza #Nojoto #nojotohindi #nojotoquote #sagarozashayari #sagaroza #HUmanity #nojotophoto #nojotopoetry
मैं तो खुदा की तलाश में निकला था,
इंसानियत के निशां ढूंढने निकला था।

जलती रही लाशें यहां बिन शमशान के,
मैं तो उन मुर्दों के पते ढूंढने निकला था।

अब इंसान नजर नहीं आते तेरे जहां में,
इंसान होने का सबूत ढूंढने निकला था।

कितनों की अस्मत सिसकती रही रात भर,
तन ढांपने को एक चीथड़ा ढूंढने निकला था।

बहरे से हो चुके हैं कान उनकी चीखों से,
मासूमों के लिए कफन ढूंढने निकला था।

छाई है अजब सी खामोशी आज की रात,
उस खामोशी का शोर सुनने निकला था।

सुना करते हैं कि यहां इंसानों की बस्ती है,
यकीन करने का कारण ढूंढने निकला था।

कौन कहता है खौफ जंगलों में ही बसता है,
खौफ़जदा ना हो वो गली ढूंढने निकला था।

अब तलक लड़ते ही मिले मजहब के नाम पर,
दफन इंसानियत के कंकाल ढूंढने निकला था।

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Sagar Oza

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