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Autumn एक हृदय थे हम दो नहीं एक मन-प्राण थे हम दो

Autumn एक हृदय थे हम
दो नहीं
एक मन-प्राण थे हम
दो नहीं
एक पूर्ण विचार थे
दो नहीं
एक साँस तार थे 
दो नहीं
एक ही झंकार थे
भिन्न स्वर नहीं 
रूठ गये तुम... टूट गये हम
कहाँ गईं वे अनुभूतियाँ...?
हम दो हो गए
हम हम ही रहे
लेकिन तुम तुम हो गए!
✍️ बृजेश आनंद राय

©Shailendra Gond kavi
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