मुजरिम हूँ तुम्हारा जो चाहे सजा दे दो तलवार रख दिया है चाहो तो सर कलम कर दो हम से गलतियाँ हुई है कबूल करता हूँ तुम्हारे दर पर खड़ा हूँ चाहो तो फांसी भी दे दो एक मर्तबा भी हम उफ्फ तक ना करेंगे तुम अगर चाहो तो अपनों से भी हमे दूर कर दो हर सज्दें के हमने रब से तुम्हारे लिए दुआ माँगा है मुहब्बत में जो भी चाहो हमे तुम जाम पिला दो कितना खुशकिस्मत हूँ मैं जो तुम्हारे साथ हूँ आरिफ जब भी चाहो तुम हमे बेवफा कर दो मुजरिम हूँ तुम्हारा जो चाहे सजा दे दो तलवार रख दिया है चाहो तो सर कलम कर दो हम से गलतियाँ हुई है कबूल करता हूँ तुम्हारे दर पर खड़ा हूँ चाहो तो फांसी भी दे दो एक मर्तबा भी हम उफ्फ तक ना करेंगे तुम अगर चाहो तो अपनों से भी हमे दूर कर दो