कल तो जो लोग हमारे चेहरे पर दाढ़ी देखा करते थे, आज वो सवाल किया करते है, उनका भी सवाल जायज है, इसमे हमे न कोई ऐतराज है , पूरी वाक्या मैं बताता हूँ हाल ए दिल सुनाता हूँ .....। वैसे दाढ़ी मुझे बेशक भाता है पर ये बात हमारे पिताजी को नही समझ आता है, उन्होंने कई बार हमारे हुलिया पर प्रशन खड़ा किया आवारा ,निकम्मा,गुंडा जैसे अनेको शब्दों का उपमा मुझे दिया ।। मैंने भी उनसे हँसते हुए कह दिया कि पिताजी आपकी बाते उचित है पर लंबी दाढ़ी तो लेखकों की हुलिया में निहित है, पिताजी के गर्म तेवर ने फरमान जारी किया और शाम तक हुलिया बदलने का हुक्म दिया । उनके बातो के आगे मेरे एक न चल पाई क्योंकि अब मेरी पीर भी हो चुकी थी पराई, बुझे मन से मैंने दाढ़ी का मर्दन कराया और ये अटपटा सा हुलिया पाया, जब खुद को मैने देखा आईने में, निःशब्द हो गया सोचते सोचते दिल में बस एक ही आवाज थी कि क्या से क्या हो गया देखते देखते हुलिया बदलने का दर्द