रोशनी है दूर ! अंधेरों में भी ; रोशनी है हमें कुछ नया करने की सोचनी है पहुँचनी हैं , रोशनी ; हम तक भी अंधेरे को भी ; इसका होश नी है कवि अजय जयहरि कीर्तिप्रद रोशनी है.......कीर्तिप्रद