हरेक चेहरे को ज़ख़्मों का आइना न कहो ये ज़िंदगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो न जाने कौन सी मजबूरियों का क़ैदी हो वो साथ छोड़ गया है तो बेवफ़ा न कहो तमाम शहर ने नेज़ों पे क्यों उछाला मुझे ये इत्तेफ़ाक़ था तुम इसको हादिसा न कहो ये और बात के दुशमन हुआ है आज मगर वो मेरा दोस्त था कल तक उसे बुरा न कहो हमारे ऐब हमें ऊँगलियों पे गिनवाओ हमारी पीठ के पीछे हमें बुरा न कहो मैं वाक़यात की ज़ंजीरो का नहीं कायल वो जो हक़ीक़त से परे हो ऐसा कुछ न कहो ये शहर वो है जहाँ राक्षस भी हैं राहत हर इक तराशे हुए बुत को देवता न कहो राहत इंदौरी.. ©Mansal Taak #duniyadari