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जगत की जननी वो, ममता की मूरत वो‌ संस्कारों की जननी

जगत की जननी वो, ममता की मूरत वो‌
संस्कारों की जननी वो,  मर्यादित वो,
आंँगन की तुलसी वो,  घर की लक्ष्मी वो,
पुरुष का स्वाभिमान वो,  बच्चों की मुस्कुराहट वो,
पूर्णिमा की अंधेरी रात का चांँद वो, जगत के दुखों को धारण करने वाली वो,
पृथ्वी के जैसे संयम बरतने वाली वो, शब्दों में जिसे बांधा जा सकता नहीं ,
क्रोध की ज्वाला वो, प्रेम का सागर भी वो,
कभी बेटी तो कभी पत्नी तो कभी मांँ हर स्वरूप में ढलने वाली वो......
नारी 🥰🥰
🙏🙏🙏
 प्रिय लेखक और लेखिकाओं,

1.आप और आपके द्वारा प्रोत्साहित प्रतिभागी इस प्रतियोगिता में कविता, शायरी, निबंध, और कहानी लिख सकते हैं।

2.हिंदी और इंग्लिश दोनों में लिख सकते हैं।

3.समय सीमा - कल रात्रि 12:00 तक।
जगत की जननी वो, ममता की मूरत वो‌
संस्कारों की जननी वो,  मर्यादित वो,
आंँगन की तुलसी वो,  घर की लक्ष्मी वो,
पुरुष का स्वाभिमान वो,  बच्चों की मुस्कुराहट वो,
पूर्णिमा की अंधेरी रात का चांँद वो, जगत के दुखों को धारण करने वाली वो,
पृथ्वी के जैसे संयम बरतने वाली वो, शब्दों में जिसे बांधा जा सकता नहीं ,
क्रोध की ज्वाला वो, प्रेम का सागर भी वो,
कभी बेटी तो कभी पत्नी तो कभी मांँ हर स्वरूप में ढलने वाली वो......
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2.हिंदी और इंग्लिश दोनों में लिख सकते हैं।

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