मध्य की रात्रि मध्य रात्रि में आँख खुली, मध्य रात्रि में मन बैचेन हुआ। मध्य रात्रि में तेरी याद आई , मध्य रात्रि में मेरा प्रेम जागा। बसुरी की मधुर धुन सुनी हूं। सुन कर मन बैचेन सा दामा - दोल हैं। अपने प्रेम को मोह कहूं या मोह को प्रेम। दुविधा बन कर आसक्ति का पेहरा घेरा।। मध्य रात्रि में तेरा यू आना! आकर प्रेम का राग छेरना, मन प्रेम रंग भरना प्रमाणित हो, चुका है। प्रेम सार के सागर में , मै डूब गई तेरे गागर में । मै सुध - बुध खोई तेरे रूप - रंग पे ।। मध्य रात्रि में आँख खुली, मध्य रात्रि में मन बैचेन हुआ।। ... कवि सोनू #Fire #कविता🔥