हुस्न तो पाबंद और शर्तों पे नदामत है। इश्क़ तो हुस्ने तौफ़ीक़ पर सलामत है। मोहब्बत की ख़ुश्बू को फैलने तो दीजिए, चाहतें बाँटने की जन्नत से इजाज़त है। हम इक दिन खुलकर मिललिए उनसे तो, सारा जहाँ कहता है कि ये तो बग़ावत है। बड़े ग़ुरूर में रहने लगा अब ख़ल्के ख़ुदा, कातिब-ऐ-तक़दीर को खफ़गी की दावत है। हश्र के दिन ज़बाब देना तुम उसको किए का, 'पाठक' ईद है तो ये इंसानियत की इबादत है। 🎀 Challenge-282 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 ईद की हार्दिक शुभकामनाएँ 🎀 🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है।