जो आरक्षण और समानता का, अर्थ नहीं समझा पाए वही एकता का राग गाते रहे। घुटते पिसते रहे ग़रीब सारे, रसूखदार मलाई खाते रहे। घर बसाने से लेकर घर बनाने तक, समाज की प्रतिष्ठा में संविधान लजाते रहे। जातिवाद के धुर विरोधी ऊँच-नीच फैलाते रहे। न धर्म की चली न संविधान की कभी! जिसके पास लाठी वही भैंस चराते रहे। 🎀 Challenge-252 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 10 पंक्तियों में अपनी रचना लिखिए।