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कविता जिंदगी की लड़ाई मैं अकेली लडूंगी जिंदगी की ह

कविता
जिंदगी की लड़ाई
मैं अकेली लडूंगी जिंदगी की हर लड़ाई,
मैं जबाब दे दूंगी उस समाज को जिसने,‌
रीति रिवाजों की बेड़ियां मेरे पैरों के लिए,
थी बनाई।
मै तोड़ दूंगी वो सारी बेड़ियां,
जो मेरी कामजाबी के रास्ते में,
थी आई।
मैं अकेली लडूंगी अपनी जिंदगी की हर लड़ाई।
मैं अकेली लडूंगी जिंदगी की हर लड़ाई,
मैं जबाब दूंगी हर उस विरोधी को जिसने,
मेरी मंजिल के रास्ते में कांटों की दीवार थी बनाई,
मैं तोड़ दूंगी उस कांटों की दीवार को जो मेरी सफलता,
के रास्ते में थी आई।
मैं अकेली लडूंगी अपनी जिंदगी की हर लड़ाई।
मै अकेली लडूंगी जिंदगी की हर लड़ाई,
मैं जबाब दूंगी हर उस शख्स को जिसने,
मेरा साथ छोड़ा था मुझे कमजोर और लाचार,
समझ कर।
मैं भी  दिखा दूंगी अपनी हिम्मत जीत कर अपनी 
जिंदगी की हर लड़ाई,
मैं अकेली लडूंगी अपनी जिंदगी की हर लड़ाई।
Meenakshi Sharma जिंदगी की लड़ाई
कविता
जिंदगी की लड़ाई
मैं अकेली लडूंगी जिंदगी की हर लड़ाई,
मैं जबाब दे दूंगी उस समाज को जिसने,‌
रीति रिवाजों की बेड़ियां मेरे पैरों के लिए,
थी बनाई।
मै तोड़ दूंगी वो सारी बेड़ियां,
जो मेरी कामजाबी के रास्ते में,
थी आई।
मैं अकेली लडूंगी अपनी जिंदगी की हर लड़ाई।
मैं अकेली लडूंगी जिंदगी की हर लड़ाई,
मैं जबाब दूंगी हर उस विरोधी को जिसने,
मेरी मंजिल के रास्ते में कांटों की दीवार थी बनाई,
मैं तोड़ दूंगी उस कांटों की दीवार को जो मेरी सफलता,
के रास्ते में थी आई।
मैं अकेली लडूंगी अपनी जिंदगी की हर लड़ाई।
मै अकेली लडूंगी जिंदगी की हर लड़ाई,
मैं जबाब दूंगी हर उस शख्स को जिसने,
मेरा साथ छोड़ा था मुझे कमजोर और लाचार,
समझ कर।
मैं भी  दिखा दूंगी अपनी हिम्मत जीत कर अपनी 
जिंदगी की हर लड़ाई,
मैं अकेली लडूंगी अपनी जिंदगी की हर लड़ाई।
Meenakshi Sharma जिंदगी की लड़ाई