Mantri Ji जनता बोली सुनो मंत्री जी, आप मंत्री आप ही देश के संतरी..! तो बताओ ये मंत्री जी, वादे के आपका क्या हुआ..? था विकास का वादा, वो किधर गया..? भूखी गरीब जनता पूछ रही सवाल रोटी मकान शिक्षा का वादा क्यों हो गया हवा..? किसको मिली नौकरी, कौन युवा हुआ रोजगार की दुकान..? सुनकर जनता का सवाल, मंत्री ने सोचा कहीं कर ना दे ये मूर्ख जनता बवाल..! मंत्री जी ने ली अपनी भृकुटी ली तान, तनिक तुनक कर फिर खोली अपनी ज़ुबाँ.., घोलकर अपनी वाणी में मिश्री की मिठास, फिर किया थोड़ा हास-परिहास..! मित्रों आगे की बात आप सुने, मंत्री जी ने शब्दों के कैसे कैसे जाल बुने.., मंत्री ने छोड़ा जनता पर अपने कुटिल ज्ञान मुस्कान का तीर, मैंने कर दिया वादा पूरा विकास का करके अपने घर और कस्बे का विकास, जनता को मिला रोटी कपड़ा और आलीशान मकान, बच्चे मेरे खाते बर्गर पिज़्ज़ा और पा रहे जाकर विदेश में उच्य शिक्षा, हर सदस्य के नाम किया एक मकान, फल फूल रहा पूरा खानदान सड़क का कर दिया काया कल्प, मेरे दर पर उतर जाती अब पूरी की पूरी राशन की ट्रक चलते हैं सब लेकर ए. सी. कार बढ़ गया है मेरे तोंद का भी आकार, मेरे घर की जनता अब ना रही गरीब, हड़प के सबकी ज़मीन ना ली डकार, अब वादा है अगले पाँच सालों में बचा खुचा है जो वो पूरा होगा, सात पीढ़ी के रहने का पुख़्ता इंतिज़ाम होगा, जनता का काम तमाम होगा..!! हम रहे तो अबकी अश्वथामा फिर मरेगा, आपके कृपा से जीत का मेरे डंका बजेगा, और फिर आगे चल दिये मंत्री जी लेकर संदेश मैडम का आ गया था उनका संतरी जी लगाने लगा नारा जय हो जय हो हमारे मंत्री जी।। शिप्रा पाण्डेय 'जागृति' ©Kshipra Pandey #मंत्री जी #WForWriters मंत्री जी