बहुत चाहा,वो चाह कर भी,न चाहे मुझे । फिर भी चाहा मुझे ,तो मैं क्या करूं।। बहुत शिद्दत से उसने,संभाला था नकाब। हवाओं ने रुख़ से हटाया, तो मैं क्या करूं ।। चराग रोशन किया था ,बहुत दूर उससे । खुद चिलमन जलाया ,तो मैं क्या करूं ।। कभी रोका नहीं, कुछ कहा भी नहीं । इल्जाम,मुझ पर ही आया,तो मैं क्या करूं।। मयखाने से तोबा ,पशेमानी शराब से । जाम आंखों ने पिलाया, तो मैं क्या करूं ।। जाम आंखों ने पिलाया, तो मैं क्या करूं ।। ©Flow Of Emotions बहुत चाहा,वो चाह कर भी,न चाहे मुझे । फिर भी चाहा मुझे ,तो मैं क्या करूं।। बहुत शिद्दत से उसने,संभाला था नकाब। हवाओं ने रुख़ से हटाया, तो मैं क्या करूं