बुरा क्यूं मान गए।। कविता।। ©रजनीश "स्वच्छंद" बुरा क्यूं मान गए।। हमने तो बताई बात, आदम की सच्ची जात। बुरा क्यूं मान गए।। इज़्ज़त भी हुई तमाम, नँगे सब सरे हमाम।