'कब तक' मोमबत्तियां बुझा दो सारे, मिटा दो बेटियों वाले हर एक नारे। पढ़ेगी बेटी पर आगे नहीं बढ़ेगी बेटी। पूरी कविता कैप्शन में 👇 मोमबत्तियां बुझा दो सारे, मिटा दो बेटियों वाले हर एक नारे। पढ़ेगी बेटी पर आगे नहीं बढ़ेगी बेटी। भ्रूण हत्या क्यूं न हो, आख़िर जी कर भी, क्या करेगी बेटी। वो तो सामाजिक दरिंदों के भेंट ही चढ़ेगी, लड़की होने की सज़ा हर दिन हर पल सहेगी। कब तक ढूँढते रहेंगे बेटियों की गलतियां,