#OpenPoetry यथार्थ स्वप्न बिखरा नींद गई यथार्थ की धरा पर रख कदम खुद पर कर ऐतबार थाम ले अब पतवार ।। तूफान अभी थमा नहीं तिमिर अभी गया नहीं अब भी है ज्वार बढ़ आगे ज़िंदगी संवार।। बादल गरज रहे बूंदें बरस रहीं हर और हाहाकार जूझने को हो तैयार ।। मंज़िल अभी दूर है मुश्किलें हर ओर हैं ना मान तू हार विजई होगा इस बार।। रास्ता नहीं सुगम माना तू लहुलुहान नहीं रुकेगी समय की धार बस इस बार होना है पार ।। #nojotohindi#yatharth#openpoetry