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पल में बिखरा था,सिमटने में बहुत देर लगी, ज़िन्दगी

पल में बिखरा था,सिमटने में बहुत देर लगी,
ज़िन्दगी क्या है, समझने में बहुत देर लगी।

इसी मिट्टी से बना फिर इसी मिट्टी में मिला,
फिर इसी ख़ाक से उठने में बहुत देर लगी।

मुद्दतों तक रहा भटकाव जहान-ए-फ़ानी में,
ख़ाक का घर था वो बनने में बहुत देर लगी।

दर्द के फूल भी मुद्दत में खिला करते हैं,
दिल का गुलदान महकने में बहुत देर लगी।

ये हसीं चेहरे भी अब और नहीं अच्छे लगते,
आइना दिल का संवरने में बहुत देर लगी।

न तो अब इश्क न चाहत न मरासिम में कशिश,
एक पत्थर था, पिघलने में बहुत देर लगी।
 #yqaliem  #zindgi #khak #qabr #dard #dil #muhabbat #marasim
पल में बिखरा था,सिमटने में बहुत देर लगी,
ज़िन्दगी क्या है, समझने में बहुत देर लगी।

इसी मिट्टी से बना फिर इसी मिट्टी में मिला,
फिर इसी ख़ाक से उठने में बहुत देर लगी।

मुद्दतों तक रहा भटकाव जहान-ए-फ़ानी में,
ख़ाक का घर था वो बनने में बहुत देर लगी।

दर्द के फूल भी मुद्दत में खिला करते हैं,
दिल का गुलदान महकने में बहुत देर लगी।

ये हसीं चेहरे भी अब और नहीं अच्छे लगते,
आइना दिल का संवरने में बहुत देर लगी।

न तो अब इश्क न चाहत न मरासिम में कशिश,
एक पत्थर था, पिघलने में बहुत देर लगी।
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