रिश्ते-नातों के भावपूर्ण प्यार का दर्द सुनाना अब ज़माने भर में अब लाजमी नहीं लगता, तमाशाई बन अपनी दास्तान ज़िन्दगी की सुनाना अब लाज़मी नहीं लगता, मतलबी इंसानों के सामने क्या बयां करना ? इंसानियत जब किसी के दिल में बाक़ी नहीं लगती, नजरअंदाज करना ये ज़माने का शौक पुराना दस्तूर ये लाईलाज सा लगता है, अब किसी को परेशां करे हम अब ये लाज़मी नहीं,आधे-आधे से घटते-बढ़ते चाँद के आकार से अपनी तकलीफ़ों के साथ सुकून भरे लम्हों का तालमेल लगाना बड़ा लाज़मी सा लगता है, ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1095 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।