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मैं और मेरी जेब....... मैं और मेरी जेब, अक्सर ये

मैं और मेरी जेब....... 

मैं और मेरी जेब, अक्सर ये बातें किया करते हैं, 
कि महंगाई न होती तो कैसा होता, 
महंगाई कम होती......तो कैसा होता, 
लोग इस बात पर हैरान होते
कि मैं और तुम मिलकर, सब कुछ कैसे खरीद रहे हैं, 
मैं और मेरी जेब, अक्सर ये बातें किया करते हैं........ 

क्या से क्या हो गए दाम, देखते ही देखते, 
गरीब बेचारा थक चुका, मेहनत के पापड़ बेलते, 
ये दाल ही है न या हीरे के दाने हैं, 
जो ठान के रखा है कि दाम बढ़ाने हैं, 
ये सरकार और महंगाई का क्या अनोखा गठबंधन है, 
और ये सिलेंडर जो इतना महंगा बिक रहा है, 
जाने इसमें L. P. G. ही है या किसी रॉकेट का ईंधन है, 
लोग सभी वाक़िफ़ हैं, बस कहने से डरते हैं, 
मैं और मेरी जेब, अक्सर ये बातें किया करते है......... 

गुज़ारा कैसे करेगा वो बेचारा मजदूर, 
महंगाई का सामना करते करते हो गया मजबूर, 
ये कपड़े की कमीजें
कहीं सरकारी दफ्तर से तो नही आने लगी है? 
सुना है सरकार भी अपना 5 % हक जमाने लगी है, 
ये पेट्रोल के दाम जो हर दिन बढ़ा रहे हैं, 
मजबूर हैं सत्ता वाले, या अपने खर्चे निकाल रहे हैं, 
जाने कितने लोग रोज़ भूख की आग में जलते हैं, 
मैं और मेरी जेब, अक्सर ये बातें किया करते हैं........ 

जो घर से दूर गए हैं कमाने के लिए, 
क्या जुटा पाएंगे पैसा अपने खाने के लिए, 
ये सरसों के तेल की बोतल 
कहीं विदेशों से तो नही आ रही है? 
या अंजाने में इसकी कीमत बढ़ाई जा रही है?
ये दूध की कीमत पे जो
सरकारी लोग निशाना साध रहे हैं, 
खुद बनाते हैं
या आजकल पशु हर्जाना मांग रहे हैं? 
चलो अच्छे दिनों का इंतज़ार थोड़ा और करते हैं, 
मैं और मेरी जेब, अक्सर ये बातें किया करते हैं........

©Sahil Kakkar
  मैं और मेरी जेब........ 
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sahilkakkar3851

Sahil Kakkar

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मैं और मेरी जेब........ Poetry #sahil_ki_kalam_se #कविता

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