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व्यक्तिगत आस्था हित मरोड़े गये, हम तो इंसान थे खू

 व्यक्तिगत आस्था हित मरोड़े गये, 
हम तो इंसान थे खूब तोड़े गये।
धर्म के मार्ग ने भिन्नता क्या धरी, 
धर्म के नाम पर हम भी दौड़े गये।।
वो हमें राजनीति बताते रहे, 
जाति विद्वेष निंदा सिखाते रहे। 
धर्म की अल्पना पे की छींटाक़शी,
पूज्य ग्रन्थों पे उँगली उठाते रहे।।
 व्यक्तिगत आस्था हित मरोड़े गये, 
हम तो इंसान थे खूब तोड़े गये।
धर्म के मार्ग ने भिन्नता क्या धरी, 
धर्म के नाम पर हम भी दौड़े गये।।
वो हमें राजनीति बताते रहे, 
जाति विद्वेष निंदा सिखाते रहे। 
धर्म की अल्पना पे की छींटाक़शी,
पूज्य ग्रन्थों पे उँगली उठाते रहे।।
aprasilmishra2489

rahi

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