रेशम ये जो रेशम की महीन , संगमरमरी डोर है न , ये किसी की साँसों की घुटन से बुना तानाबाना है , ये जो झक सफ़ाक़ सा महीन तानाबाना है न , ये बुनकर की सांसो की माला है , याद रहे , एक-एक साँस को लपेटा है कफ़न की तरह , बदलने खुद के वजूद को, फ़ना होना पड़ता है , कुछ यूं ही है जिंदगी का फ़लसफ़ा । #रेशम ये जो रेशम की #महीन , #संगमरमरी #डोर है न , ये किसी की #साँसों की #घुटन से #बुना #तानाबाना है , ये जो झक #सफ़ाक़ सा महीन #तानाबाना है न , ये #बुनकर की #सांसो